मामला रोकड़ मिलान में कमी का !
मैंने वह समय भी देखा है जब अगर किसी साथी के रोकड़ मिलान में कमी आयी तो पूरी की पूरी शाखा रोकड़ मिलान में जुट गयी-अगर मिलान नहीं हो सका और रोकड़ भरपाई कि नौबत आयी तो यदि रक़म छोटी हुई तो सबने मिल कर पूरी की, बड़ी हुई तो शाखा प्रबंधक स्वयं सांत्वना के लिए आगे आया-उसने शाखा के किसी बड़े ग्राहक के सामने हाथ फैलाया और जैसे तैसे अपने मातहत को आर्थिक नुक़सान होने से बचाया-फिर वो समय भी देखा जब रोकड़ मिलान में कमी की सूचना पर अधिकांश लोग बेफ़िक्री के साथ घर चले गए-केवल दो चार ही अभाग़े के साथ हाथ बँटाने को बचे । कमी की भरपाई की बात की तो तर्क आया यह तो असावधानी को प्रोत्साहित करना हुआ, ऐसे तो कोई भी जानबूझ कर कमी करता रहेगा और हम भरते रहेंगे । अब यह दौर भी देख रहे हैं कि साथी पोस्ट डाल रहा है कि उसे इतने जेब से भरने पड़े हैं और हम सहानुभूति व्यक्त कर रहे हैं । संवेदनाओं में निरन्तर गिरावट महसूस की जा सकती है ।
अभी पिछले साल की बात है-एक अनजान साथी ने फ़ेसबुक पर संदेश भेजा-“सर मेरे कैश में एक लाख की कमी आ गयी है, सीसी कैमरे के फ़ुटिज में चोरी दिख रही है, फिर भी मुझ पर भरपायी के लिए दवाब बनाया जा रहा है-मैं तो ट्रेन से कट कर मर जाऊँगा । मैंने उस से पूरी बात जानी, सीसी कैमरे की फ़ुटिज देखी, शाखा के मुख्य प्रबन्धक से बात की पूरे सम्मान के साथ जब वो किसी तरह नहीं माने तो मैंने उनसे सवाल दागा कि आख़िर किस नियम के तहत भरपायी के लिए दबाव डाल रहे हैं -ज़रा उस नियम को ठीक से पढ़ तो लें और साझा भी करें-मुख्य प्रबन्धक इतने बड़े हितैषी बने कि मुझे सलाह देने लगे कि अगर इसने रुपए नहीं भरे तो मामला रिपोर्ट करना पड़ेगा फिर इसकी नौकरी नहीं बचेगी । मुझे उनसे साफ़ कहना पड़ा नौकरी की चिंता आप न करें-हम लोग कर लेंगे । बैंक नियमनुसार कैश की भरपायी कीजिए जो कि आपका काम है । साथी बिना भरपाई किए घर गया । दस दिन तक उस पर हर तरह का दबाव बनाया गया-धमकाया गया फिर उसके खाते में एक लाख रुपए का lien mark कर दिया गया । मैंने उसकी यूनियन के महामंत्री का नम्बर ले कर उनसे बात की-महामंत्री जी ने अथक प्रयास किए और lien ख़त्म करवाया । अब उसे आरोप पत्र दे कर जाँच की जा रही है- ११ को एक महिला कर्मी के रुपए १००००/ कम हो गए, भरपायी कर आँखों में आँसू लिए चली आयी, अगले दिन काम करते वक़्त उसका पेन गिर गया, उठाने के लिए झुकी तो पूरी गड्डी ड्रॉर के बीच फँसी नज़र आयी-अब ख़ुशी का अंदाज़ा आप लगा सकते हो-एक अन्य शाखा में भी यही हुआ-वहाँ पूरे पचास हज़ार की कमी आयी-युवा बैंक कर्मी तो आँखों में आँसू लिए सर पकड़ कर बैठ गया-एक वरिष्ठ साथी के अनुभवी दिमाग़ ने काम किया-उन्होंने एक एक ड्रॉर बहार निकाली और गड्डी मिल गयी । अभी एक शाखा में मेरी मौजूदगी में करेन्सी चेस्ट से नोट आए-हेड cashier की पुरानी आदत है किसी पर विश्वास न करने की सो उन्होंने एक गड्डी नोट काउंटिंग मशीन में लगायी-९८ नोट । अब उन्होंने हाथ से गिना फिर ९८ । अब उन्होंने शाखा प्रबंधक को बताया-कई पैकेट में नोट कम-शाखा प्रबन्धक ने नोट वापिस करने का फ़ैसला लिया-हेड cashier ने मुझे फ़ोन किया । मैंने शाखा प्रबंधक से कहा भाई यह क्या बात हुई ? पैकेट सील करो -CO इन्फ़ोर्म करो-जाँच करवाओ-तुम तो बवाल टालने के नाम पर चोर बचा रहे हो और अगर ऐसा नहीं किया तो कल के अख़बार में तो छपोगे ही-चोर से मिली भगत का आरोप भी लगाएँगे । उसी दिन मैंने गणपति भाई का chennai से संदेश मिला उन्होंने बताया कि वे ट्रेन में हैं इसलिए मैं पोस्ट बना के डालूँ कि करेन्सी चेस्ट से आने वाले पैकेट में रुपए कम हैं -यानि कानपुर ही नहीं चेन्नई में भी यह अपवित्र काम चालू है-तभी मैंने पोस्ट डाली । मैं बस्ती के पंजाब नैशनल बैंक के श्री अरुण धवन को जानता हूँ जिन्होंने मात्र रुपए १०० के एक नोट के भरपायी से मना कर दिया था-निलम्बित किए गए थे, बिना किसी नेता की मदद के शान के साथ वापिस आए थे-नोट कमी के कई मामले आरोप पत्र मिलने के बाद मैंने डील किए हैं और सम्मानपूर्वक निबटाए हैं - उनमें से कई तो फ़ेसबुक पर मेरे मित्र हैं ।
पोस्ट का आशय केवल इतना है कि कई बार आप ग़लत नहीं होते, आपसे कोई भी असावधानी नहीं हुई होती फिर भी रक़म की भरपायी आप करते हैं । अधिकांश बैंकों की निर्देश पुस्तिका में प्रावधान हैं कि रोकड़ में कमी पाए जाने की दशा में सम्बन्धित रोकड़िया से भरपाई की जाएगी या फिर Sundry या Imprest अकाउंट से रक़म पूरी की जाएगी जिसकी भरपायी अगली closing से पहले सम्बन्धित रोकड़िया से की जाएगी । तो सवाल यह है कि यह Sundry या Imprest से भरपायी का प्रावधान क्यों है ? इसीलिए न कि इस अवधि में रोकड़ में कमी क्यों हुई इसकी भली भाँति जाँच पड़ताल की जाएगी । हम लोगों के डराए जाने पर ख़ुद उसी दिन भरपाई करके ऐसी जाँच की सम्भावना ही ख़त्म कर रहे हैं ।
मेरा केवल यह कहना है कि वर्तमान दौर में इस मुद्दे पर चर्चा और बहस होनी चाहिए और कोई तरीक़ा निकलना चाहिए जिसमें हमारे ईमानदार साथी को अपनी जेब से भरपायी न करनी पड़े क्योंकि इस से ज़्यादा पीड़ादायी बात और कोई नहीं होती ।