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Wednesday, November 9, 2022

WeBankers पंजाब नैशनल बैंक के साथ साथ बैंक ऑफ बडौदा में शामिल हुए पूर्ववर्ती विजया बैंक और नैनीताल बैंक के पीटीएस को भी फुल टाइम किए जाने के लिए संघर्ष कर रहा है

 


कहानी पंजाब नैशनल बैंक के अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों के दुर्भाग्य की

कमलेश चतुर्वेदी, M.Com., LL.B., CAIIIB, Diploma in Management


यह कहानी ऐसे अभागे लोगों की है जो उन लोगों पर भरोसा करते आए हैं जो इनके शोषण करने वालों के सहायक की भूमिका अदा करते हुए इनका अहित करते रहे हैं, ये वे लोग हैं जो खुद कुछ समझना नहीं चाहते, जिन्हें अपनी खुद की ताक़त पर विश्वास नहीं है और हमेशा की तरह ही ये उन लोगों के पाले में खड़े हैं जो इनकी वर्तमान दुर्दशा के दोषी हैं – इसलिए एक बार फिर इन्हें सच्चाई से अवगत करवाते हुए इनकी आत्मा को झकझोरना ज़रूरी है और इस लेख के माध्यम से यही प्रयास है मेरा । इन्हें सदबुद्धि आए और यह अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करें-इसलिए प्रमाण देते हुए यथार्थ का विवरण प्रस्तुत है । 


द्विपक्षीय समझौते के प्रावधान और सरकार के दिशा निर्देश: 


बैंक कर्मचारियों की सेवा शर्तें तय करने वाले जो अवार्ड और समझौते हैं उनमें अंशकालीन कर्मचारियों को पूर्णक़ालीन रिक्तियों हेतु नियुक्तियों में प्राथमिकता व वरीयता दिए जाने का प्रावधान किया गया है, देखें प्रथम द्विपक्षीय समझौते के पैरा 20.6 का प्रावधान: 

इसी तरह पाँचवें द्विपक्षीयu समझौते 31.10.1989  के पैरा 4 का प्रावधान देखें :

सरकार के दिशा निर्देश : 

पूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय इन्दिरा गाँधी की अध्यक्षता में 1975 में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई जिसमें तय हुआ कि समाज के निचले तबके के लोगों को जो सफ़ाई के काम मे लगे है उन्हें  समाज की मुख्य धारा में शामिल करवाने के उद्देश्य से उन्हें शैक्षिक योग्यता में छूट देते हुए चपरासी पद पर उनका समायोजन किया जाना चाहिए । इस निर्णय को कार्य रूप में परिणित किए जाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा O.M. NO. 42015/3/75-Estt.(C) दिनांक 16 जनवरी 1976 को सभी मंत्रालयों को निर्देश दिए गए कि चपरासी पद की 25% रिक्तियां सफ़ाईकर्मी, फ़राश, चौकीदार आदि के लिए आरक्षित रहेंगी और ऐसे सफ़ाईकर्मी, फ़राश, चौकीदार आदि को चपरासी के रूप में अंतरित करते हुए भरी जाएँगी जिन्होंने 5 साल की सेवा पूरी कर ली है और उनके पास वह शैक्षिक योग्यता नहीं है जो सीधी भर्ती के लिए निर्धारित की गई है-उन्हें बस यह प्रमाणित करना होगा कि वे हिन्दी पढ़ सकते हैं – देखें सरकार के निर्देश । 



सरकार द्वारा 22 मई 1989 को निर्देश दिए गए कि ऐसे एससी/एसटी अभ्यर्थी जो बिना किसी छूट के अन्य समुदायों के अभ्यर्थियों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए मेरिट के आधार पर चयनित होते हैं इन्हें आरक्षण का लाभ देते हुए चयनित नहीं माना जाएगा । 



उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि यदि द्विपक्षीय समझौते के प्रावधान और सरकार के दिशा निर्देश सही तरीक़े से लागू किए जाते तो अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों का कल्याण हो गया होता लेकिन पंजाब नैशनल बैंक में अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों को इन प्रावधानों और दिशा निर्देशों के लाभों से वंचित करने का ताना-बाना बुन लिया गया । 


अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों के ख़िलाफ़ पंजाब नैशनल बैंक में कपटपूर्ण षड्यंत्र की शुरुआत: 

सरकार के दिशा निर्देशों और द्विपक्षीय समझौतों के प्रावधानों के ज़रिए मिलने वाले लाभों से अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों को वंचित करने के उद्देश्य से मैनज्मेंट और बैंक की बहुमत प्राप्त यूनियन ने चालकी के साथ 07.05.1984 को एक समझौता केन्द्रीय श्रमायुक्त (दिल्ली) के समक्ष हस्ताक्षरित किया जिसे पी॰डी॰ सरकुलर संख्या 772 दिनांक 17.05.1984 के ज़रिए प्रचारित किया गया । इस समझौते के अनुसार : 


- एक तिहाई वेतन वेतन पर काम करने वाले सफ़ाई कर्मी का एक साल का अनुभव प्रत्येक 3 साल की सेवा पर माना जाएगा ।

- आधे वेतन पर काम करने वाले सफ़ाई कर्मी का एक साल का अनुभव प्रत्येक 2  साल की सेवा पर माना जाएगा ।


- तीन चौथाई वेतन पर काम करने वाले सफ़ाई कर्मी का एक साल का अनुभव प्रत्येक 4 साल की सेवा पर माना जाएगा ।


अब ऐसे स्थानों पर जहां बैंक की एक ही शाखा थी और वहाँ एक तिहाई वेतन पर सफ़ाई कर्मी काम कर रहा था, वह 15 साल की सेवा के बाद ही सरकार के 5 साल की सेवा वाली शर्त को पूरा कर सकता था भले वह उतनी शैक्षिक योग्यता प्राप्त कर ले जितनी सीधी नियुक्तियों के लिए आवश्यक थीं । इसी तरह आधे वेतन वाला 10 साल में और तीन चौथाई वाला 3 साल नौ महीने में । बैंक ने चालकी के साथ सफ़ाई कर्मियों को अधीनस्थ सँवर्ग में न मानते हुए एक अलग कृत्रिम वर्ग “सफ़ाई कर्मी” वर्ग की रचना कर डाली और 1/3 से ½, ½ से 3/4 , ¾ से पूरे वेतन पर सफ़ाई कर्मियों का अन्तरण करने लगी । चपरासी के बराबर का पूरा वेतन पाने वाले फ़ुल टाइम स्वीपर का पदनाम चपरासी परिवर्तित करते हुए उनसे 25% का कोटा पूरा कर सरकार को सूचित करने लगी कि सरकार के दिशा निर्देशों का पालन किया जा रहा है । मतलब यह बिना किसी वेतन बढ़ोतरी के लाभ के केवल काम और पदनाम में परिवर्तन करते हुए 25% की जगह नाम मात्र के फ़ुल टाइम स्वीपर वह भी केवल बहुत बड़े शहरों में जहां फ़ुल टाइम स्वीपर वाली शाखा होती थी चपरासी बनते थे । 


चपरासी पद हेतु नियुक्तियाँ सीधे रोज़गार कार्यालय के माध्यम से नाम माँग कर भर ली जाती थीं जिसकी कोई सूचना सफ़ाई कर्मियों को सरकुलर निकाल कर नहीं दी जाती थी -इस तरह द्विपक्षीय समझौते के प्राथमिकता और वरीयता देने वाले प्रावधान केवल काग़ज़ पर थे । 


अब बहुत से ऐसे अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मी जो अपना भविष्य बनाना चाहते थे वे बेचारे अधिक शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने के लिए बाध्य थे जबकि सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार किसी शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं थी, उन्हें केवल हिन्दी, अंग्रेज़ी या स्थानीय भाषा पढ़ना आना ज़रूरी था । भविष्य बनाने के इच्छुक ऐसे सफ़ाई कर्मियों ने अधिक शैक्षिक योग्यता अर्जित कर डाली – कोई कोई ने तो स्नातक की उपाधि अर्जित कर ली-ऐसे में इन्हें अन्य ऐसे चपरासियों की तरह जिन्होंने मेट्रिक या स्नातक की शैक्षिक योग्यता अर्जित की थी और क्लर्क के रूप में अफ़िशीएट कर रहे थे, अफ़िशीएटिंग के अवसर दिए जाने चाहिए थे । ऐसे में मैनज्मेंट और बहुमत प्राप्त यूनियन ने मिल कर उन्हें अफ़िशीएटिंग के अवसर से वंचित करने के लिए 19.06.1991 को एक और समझौता किया जो पी॰डी॰ सरकुलर संख्या 1289 दिनांक 21.06.1991 के ज़रिए प्रकाशित किया गया। इस समझौते में प्रावधान किया गया कि सफ़ाई कर्मी भले मेट्रिक या ग्रैजूएट हो जाएँ उन्हें चपरासियों की भाँति क्लर्क के रूप में अफ़िशीएट करने का अवसर नहीं दिया जाएगा। 

यहाँ यह जान लेना ज़रूरी है कि चपरासी के रूप में नियुक्ति के लिए शैक्षिक योग्यता जूनियर हाई स्कूल यानि कक्षा 8 पास और आयु सीमा 18 से 45 साल थी-बड़ी संख्या में अंशकालीन सफ़ाई कर्मी इन शर्तों को पूरा करते थे और द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों के अनुसार प्राथमिकता और वरीयता देते हुए इन्हें ही चपरासी बनना था लेकिन इनकी जगह सीधे रोज़गार कार्यालय से नाम मँगवा कर बिना किसी सूचना के बाहरी व्यक्ति नियुक्त किए जा रहे थे । भला भेद भाव पूर्ण व्यवहार किए जाने की ऐसी मिसालें कहीं और मिलेंगी ? प्रमाण के तौर पर हम बैंक के जवाब और कथन को परिशिष्ट के रूप में दे रहे हैं ताकि स्वार्थी तत्व झूठ बोलते हुए सफ़ाई कर्मियों  को बरगलाने के लगातार चल रहे धूर्ततापूर्ण खेल में सफल न हो सकें । 


सरकार के दिशा निर्देशों के पीछे छुपे उद्देश्यों को पूरा करने की शुरुआत अन्य बैंकों द्वारा: 


सरकार के दिशा निर्देश स्पष्ट थे-इन निर्देशों का उद्देश्य था समाज के सबसे निचले और कमजोर तबके के लोगों को आर्थिक रूप से इस लायक़ बनाना कि वे समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें । सबसे पहले भारतीय स्टेट बैंक ने इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पहल की-उसने 31.12.2005 तक जो भी अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मी स्टेट बैंक में कार्यरत थे उन्हें 01 जनवरी 2006 से क्रमवार तरीक़े से पूर्ण वेतन पर परिवर्तित करने की शुरुआत की और 30 अप्रैल 2006 तक सभी अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों के पदनाम में परिवर्तन करते हुए उन्हें पूर्ण वेतन पर समायोजित किया और बैंक से अंशकालीन कर्मचारियों के पद को समाप्त कर दिया । इलाहबाद बैंक और बैंक ऑफ़ इण्डिया ने भी स्टेट बैंक का अनुसरण करते हुए अपने यहाँ के अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों को पूर्ण वेतन पर समायोजित करते हुए अपनी अपनी बैंकों में अंशकालीन कर्मचारियों की परम्परा को ख़त्म कर दिया । 


क्या हुआ पंजाब नैशनल बैंक में ?


इन तीन बैंकों द्वारा अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों को पूर्ण वेतन पर समायोजित किए जाने की घटना ने पंजाब नैशनल बैंक के अंशक़ालीन कर्मचारियों को उसी तरह उद्वेलित किया जिस तरह आज वे सिंडिकेट बैंक द्वारा अपने सफ़ाई कर्मियों को पूरे वेतन पर समायोजित करने और पंजाब नैशनल बैंक में ओबीसी और यूनाइटेड बैंक के मर्जर के बाद उद्वेलित हैं । पंजाब नैशनल बैंक में भी अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों को पूर्ण वेतन पर समायोजित किए जाने की माँग उठी । यहाँ की बहुमत प्राप्त यूनियन का रुख़ वही था जो हाल ही में पंजाब नैशनल बैंक की बहुमत प्राप्त फ़ेडरेशन के महामन्त्री द्वारा अपने औद्योगिक संगठन के राष्ट्रीय महामन्त्री को लिखे पत्र में व्यक्त किए गए हैं । जिस तरह आज अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मी बैंक में कार्यरत अन्य यूनियनों से उन्हें पूर्ण वेतन पर समायोजित किए जाने के लिए संघर्ष की माँग कर रहे थे, उन्हें अपने सहयोग और समर्थन का वादा कर रहे थे । यह संगठन बहुमतप्राप्त संगठन के साथ क्षेत्रीय श्रमायुक्त (केंद्रीय) के समक्ष 07.05.1984 को हुए समझौते को जो क़ानूनी रूप से बैंक के सभी कर्मचारियों और संगठनों पर बाध्यकारी था-उसका हवाला देते हुए अपनी मजबूरी प्रगट कर रहे थे। उनकी अपनी एससी/एसटी एसोसिएसन उस वक़्त भी मैनज्मेंट को पत्र लिख कर अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों को पूरे वेतन पर समायोजित किए जाने की माँग उसी प्रकार कर रही थी जैसे आज कर रही है । बड़ी विकट स्थिति थी -एक तरफ़ बहुमत प्राप्त फ़ेडरेशन अन्य बैंकों की भाँति पंजाब नैशनल बैंक के अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों को पूर्ण वेतन पर समायोजित करने की माँग मैनज्मेंट से करने और उस पर दबाव बनाने को राज़ी नहीं थी वहीं दूसरी ओर अन्य संघठन बहुमत प्राप्त फ़ेडरेशन का विरोध करते हुए उसे दोषी बताते हुए उसके द्वारा 07.05.1984 के समझौते के कारण खुद कुछ भी कर पाने में अपने को असमर्थ बता रहे थे ।


ऐतिहासिक संघर्ष की शुरुआत: 


इन हालातों में मैंने पंजाब नैशनल बैंक वर्कर्स यूनियन, उत्तर प्रदेश के मंत्री के रूप में कानपुर में अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों का एक सम्मेलन आयोजित किया जिसमें तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्री श्रीप्रकाश जायसवाल जी को मुख्य अतिथि  के रूप में आमंत्रित किया और उनके सामने माँग रखी कि स्टेट बैंक, इलाहबाद बैंक और बैंक ऑफ़ इण्डिया की भाँति पंजाब नैशनल बैंक के अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों को पूर्ण वेतन पर समायोजित करवाने के लिए अपने स्तर से प्रयास करें । श्री जायसवाल ने अपनी ओर से मैनज्मेंट और समाज कल्याण मन्त्रालय को पत्र लिखे, अनुसूचित जाति आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष पहले सरदार बूटा सिंह और फिर श्री पी॰ एल॰ पुनिया जी से मुलाक़ात करवाई, मैनज्मेंट को पत्र लिखे गए । इन पत्रों के उत्तर में मैनज्मेंट ने हर बार बहुमत प्राप्त संघठन के साथ 07.05.1984 को हुए समझौते का हवाला देते हुए कहा कि बैंक द्वारा द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों और सरकार के दिशा निर्देशों का अनुपालन किया जा रहा है । 


जब इतने बड़े स्तर पर राजनैतिक प्रयास, लिखा पढ़ी और भाग-दौड़ से कोई समाधान निकलता दिखाई नहीं दिया तब जो वैधानिक व्यवस्था है उसके तहत संघर्ष करने का निर्णय लिया गया । क्षेत्रीय श्रमायुक्त (केंद्रीय) के समक्ष औद्योगिक विवाद दायर किया गया, बैंक द्वारा लिखित उत्तर और यूनियन के प्रति उत्तर के बाद क्षेत्रीय श्रमायुक्त (केन्द्रीय) द्वारा बैंक को सलाह दी गई और दबाव डाला गया कि अन्य बैंकों की भाँति अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों को पूर्ण वेतन पर समायोजित किया जाना चाहिए । बैंक ने क्षेत्रीय श्रमायुक्त के सुझाव को नहीं माना, अतः क्षेत्रीय श्रमायुक्त द्वारा मध्यस्थता की विफलता की रिपोर्ट अपनी संस्तुति के साथ केन्द्रीय श्रम मंत्रालय को भेजी गई जहां सरकार ने मामले को न्याय निर्णय हेतु उपयुक्त मानते हुए केंद्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण को सौंप दिया । 


हमने औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष वे सभी मुद्दे पूरे तर्कों और प्रमाणों के साथ उठाए जिनकी वजह से अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों की हालात दयनीय थी- हमने बैंक के बहुमत प्राप्त संगठन के साथ 07.05.1984 को हुए समझौते और सरकार के दिशा निर्देशों का पालन किए जाने की दलीलों को अकाट्य तर्कों के साथ काटा। प्रारम्भिक अवस्था में ही जब मैनज्मेंट को इस बात का आभास हुआ कि मामला उसके ख़िलाफ़ जा सकता है तभी बहुमत प्राप्त संघठन और मैनज्मेंट ने एक और षड्यंत्रपूर्ण चाल चली । उन्होंने उस वक्त चपरासी पद हेतु नियुक्ति के लिए निर्धारित नियमों में परिवर्तन कर डाला । उस वक्त चपरासी की नियुक्ति हेतु निर्धारित योग्यता जूनियर हाई स्कूल/कक्षा 8 पास और आयु 18 से 45 साल थी । नियुक्ति के इन नियमों के चलते द्विपक्षीय समझौते और सरकार के निर्देशों का अक्षरशः पालन करने पर बड़ी संख्या में अंशक़ालीन कर्मचारी अन्य समुदायों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए स्वयं की मेरिट पर द्विपक्षीय समझौते के प्राथमिकता और वरीयता दिए जाने के प्रावधान के आधार पर चपरासी बन जाते और उन्हें अंशक़ालीन कर्मचारी के रूप में की गई सेवाओं का लाभ देते हुए अन्य कर्मचारियों से सीनियार्टी में ऊपर मानना पड़ता और इनकी यह नियुक्ति आरक्षण का लाभ देते हुए नियुक्ति भी नहीं मानी जाती । अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों को अपनी योग्यता के बल पर पूर्ण वेतन पर चपरासी बनने के इस लाभ से वंचित करने के उद्देश्य से षड्यन्त्रपूर्वक चपरासी के रूप में नियुक्ति हेतु निर्धारित शैक्षिक योग्यता को जूनियर हाई स्कूल/कक्षा 8 से बढ़ा कर सीधे 10+2 या समकक्ष कर दिया और निर्धारित आयु 18 से 45 साल को घटा कर 18 से 24 साल कर दिया । हमने इस षड्यंत्रपूर्ण परिवर्तन को एक अलग विवाद लगाते हुए चुनौती दी और कहा कि न्याय निर्णय के लिए लम्बित प्रक्रिया के दौरान इस तरह का परिवर्तन ग़ैर क़ानूनी और अवैध है । 


क्या हासिल हुआ इस ऐतिहासिक संघर्ष से ? 


यह संघर्ष लगभग दो साल तक क्षेत्रीय श्रमायुक्त और फिर फ़रवरी 2009 से मार्च 2014 तक कुल लगभग सात साल तक चला - मैनज्मेंट के द्वारा निर्णय में देरी के लिए हर तरह के हथकण्डे अपनाए गए। इस लम्बे संघर्ष के लिए किसी से भी एक नए पैसे का आर्थिक अनुदान नहीं लिया गया । व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए यह संघर्ष एक सपने को पूरा करने जैसा था जिसके लिए मैंने जुनूनी अन्दाज़ में हर सम्भव प्रयत्न किए और खुद पैरवी की। इस पूरे संघर्ष की दास्ताँ भारत के राजपत्र के जुलाई 06 से जुलाई 12 के अंक में पेज 5107 से 5114 तक भारत सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है जिसे निम्न लिंक पर जा कर पढ़ा जा सकता है : 


 http://egazette.nic.in/WriteReadData/2014/163693.pdf


हमारे द्वारा उठाए गए मुद्दे : 

हमारे द्वारा उठाए गयी माँग और मुद्दे भारत के राजपत्र में छपे अवार्ड के पैरा 3 से 9 तक अंकित हैं जिन्हें हम ज्यों का त्यों दे रहे हैं : 




ध्यान देने योग्य बात है कि हमने ज़ोरदारी के साथ कहा : 

- कि बैंक ने अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों के लिए एक कृत्रिम वर्ग सफ़ाई कर्मचारी वर्ग की रचना कर डाली है जबकि वास्तविकता यह है कि यह अधीनस्थ सँवर्ग में आते हैं और अधीनस्थ सँवर्ग के लिए निर्धारित वेतनमान पाते हैं । 

- कि द्विपक्षीय समझौते में निर्धारित प्राथमिकता और वरीयता से अबशकालीन सफ़ाई कर्मियों को वंचित करने के उद्देश्य से बैंक न तो चपरासी पद की रिक्तियों को अख़बारों में प्रकाशित करती है और न ही अलग से सरकुलर निकाल कर अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों को इन रिक्तियों के बारे में सूचित करते हुए उनसे आवेदन पत्र आमंत्रित करती है । 

- कि बड़ी संख्या में चपरासी के पद ख़ाली हैं और बैंक निरन्तर चपरासियों की संख्या कम करते हुए अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों से चपरासी के काम ले रही है लेकिन उन्हें चपरासी पद के वेतन का भुगतान नहीं कर रही है । खुद बैंक ने माना है कि अकेले लखनऊ ज़ोन की 16 शाखाओं में एक भी चपरासी नहीं है -साफ़ ज़ाहिर है कि इन शाखाओं में अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मी ही चपरासी का काम कर रहे हैं । 

- यह कि अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मियों में बड़ी संख्या में चपरासी पद हेतु निर्धारित पात्रता रखने वाले कर्मचारी हैं जिन्हें द्विपक्षीय समझौते के प्रावधान के अनुसार नियुक्ति में प्राथमिकता और वरीयता उनकी खुद की मेरिट के आधार पर मिलनी चाहिए थी जिससे उन्हें वंचित किया गया है । 

- यह कि अंशकालीन कर्मचारियों में ऐसे बहुत से कर्मचारी हैं जो हिंदी, अंग्रेज़ी या स्थानीय भाषा पढ़ सकते हैं जिन्हें सरकार द्वारा निर्धारित 25% के कोटे में चपरासी के रूप में नियुक्ति मिलनी चाहिए थी जो नहीं दी गई । 

- यह कि पूरे मुद्दे पर विचार करने के बाद इन अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों के साथ न्याय करने के उद्देश्य से उन्हें 01.04.2006 से भारतीय स्टेट बैंक की भाँति चपरासी पद का दर्जा और समस्त लाभ दिए जाने चाहिए ।


बैंक ने भी हमारे द्वारा उठाए गए मुद्दों का ज़ोरदारी से प्रतिवाद किया । बैंक द्वारा किया गया प्रतिवाद अवार्ड के पैरा 10 से पैरा 19 तक अंकित है । मुख्य रूप से बैंक का कहना था: 

- कि उसने बैंक की बहुमत प्राप्त फ़ेडरेशन के साथ 07.05.1984 को क्षेत्रीय श्रमायुक्त (केन्द्रीय) के समक्ष समझौता किया है  जिसे पी॰डी॰ प्रपत्र संख्या 772 दिनांक 17.05.1984 के माध्यम से प्रकाशित किया है। चूँकि यह समझौता औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2(p) के तहत पंजीकृत समझौता है अतः यह बैंक के सभी अंशक़ालीन कर्मचारियों और विवाद उठाने वाली यूनियन पर बाध्यकारी है जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती । 

- यह कि बैंक जो भी करती है वह इसी 07.05.1984 के समझौते का अक्षरशः पालन करते हुए करती है। जहां बैंक की एक से अधिक शाखाएँ हैं वहाँ 1/3 से 1/2, 1/2 से 3/4 और 3/4 से फ़ुल में परिवर्तन वरिष्ठता के आधार पर किया जाता है । 

- यह कि सरकार द्वारा चपरासी के 25% पदों पर सफ़ाई कर्मियों की नियुक्ति सम्बन्धी निर्देशों का पालन करने के लिए बैंक ने पी॰डी॰ प्रपत्र संख्या 22/99 दिनांक 24.09.1999 के ज़रिए दिशा निर्देश जारी किए हैं जिसके अनुसार 1/3, 1/2, और 3/4 पर काम करने वाले कर्मचारियों को चपरासी के रूप में नियुक्ति पर तब विचार किया जाता है जब वे पूर्णक़ालीन सफ़ाई कर्मचारी के रूप में परिवर्तित होने के बाद सरकार द्वारा निर्धारित 5 साल की सेवा पूरी कर लेते हैं । 

- यह कि 1/3 पर काम करने वाले अंशकालीन सफ़ाई कर्मियों की एक साल की सेवा 3 साल, 1/2 वाले की 2 साल और 3/4 वाले की 18 महीनों में मानी जाएगी । इस तरह 1/3 पर काम करने वाला 15 सालों में 5 साल की सेवा वाला सफ़ाई कर्मी माना जाएगा, अब इसमें सरकार द्वारा निर्धारित 5 साल और जोड़ने पर यानी 20 साल की सेवा के उपरान्त वह चपरासी बनने की पात्रता हांसिल करेगा । 

- यह कि इस तरह पात्रता प्राप्त करने वालों का साक्षात्कार सीधे चपरासी के रूप में भरती होने होने वालों के साथ या फिर अलग से लिया जाता है  । सफल अभ्यर्थियों को एक पैनल में रखा जाता है और उन्हें वरिष्ठता के क्रम में चपरासी पद की रिक्तियों में समायोजित किया जाएगा । 

- इस तरह बैंक का कहना था कि वह द्विपक्षीय समझौते और सरकार के दिशा निर्देशों का ईमानदारी से पालन कर रही है और उसके द्वारा किसी भी तरह की अनुचित श्रम प्रणाली नहीं अपनाई जा रही है ।


हमारे द्वारा बैंक के कथन का प्रतिवाद : 

बैंक के कथन का हमारे द्वारा कड़ा प्रतिवाद किया गया - यह प्रतिवाद अवार्ड के पैरा 20 से 23 तक अंकित है। हमने प्रतिवाद में कहा : 

- फ़ुल टाइम स्वीपर वे हैं जो सालों की सेवा के बाद 1/3 से 1/2 और 1/2 से 3/4 तक का सफ़र पूरा करते हुए यहाँ तक पहुँचे हैं -ये वे भाग्यशाली लोग हैं जो ऐसी जगहों पर तैनात हैं जहां बड़ी शाखा है वरना 5000 और इससे अधिक सक्वायर फ़ीट की शाखाएँ जहां फ़ुल टाइम स्वीपर की नियुक्ति का प्रावधान है वे नाम मात्र की हैं - यदि बैंक के कथन को स्वीकार कर लिया जाए फिर तो सरकार के निर्देश और उन निर्देशों के पीछे के उद्देश्य मात्र काग़ज़ पर रह जाएँगे । 

- अंशकालीन सफ़ाई कर्मी वे हैं जिन्हें इसी रूप में बैंक ने नियुक्ति दी है और जिन्होंने 5 साल की सेवा पूरी कर हिन्दी, अंग्रेज़ी या स्थानीय भाषा पढ़ने की सरकार द्वारा निर्धारित योग्यता प्राप्त कर ली है या फिर वे हैं जिन्होंने चपरासी पद की नियुक्ति हेतु निर्धारित योग्यता प्राप्त कर ली है और द्विपक्षीय समझौते के प्रावधान के अनुसार चपरासी पद हेतु नियुक्ति में प्राथमिकता और वरीयता के हक़दार हैं । 

- फ़ुल टाइम स्वीपर तो वे हैं जो चपरासी पद का वेतन वैसे ही पा रहे हैं, उन्हें चपरासी का पदनाम दिया जाना मात्र पदनाम और कार्य में परिवर्तन है - पदनाम में परिवर्तन तो मात्र एक साधारण इंटर्व्यू के माध्यम से किया जा सकता है -वैसे भी बैंक में चपरासी पद के ऐसे बहुत से काम हैं जिसमें किसी ख़ास योग्यता की कोई ज़रूरत नहीं है । 

- वास्तविकता और सच्चाई यह है कि जब कभी चपरासी पद की रिक्तियाँ होती हैं - बैंक इन रिक्तियों के 25% के बराबर फ़ुल टाइम स्वीपर के पदनाम को परिवर्तित कर चपरासी कर देती है और सरकार को सूचित कर देती है कि उसके निर्देश का पालन हो गया जबकि यह तो केवल कार्य परिवर्तन की साधारण प्रक्रिया है जिससे फ़ुल टाइम स्वीपर से चपरासी पदनाम पाने वाले कर्मचारी का कोई आर्थिक भला नहीं हुआ । 

- चपरासी पद की 50% रिक्तियों पर बैंक सीधे रोज़गार कार्यालय से नाम मँगवा कर ऐसे लोगों को चपरासी नियुक्त कर देती है -ऐसे अंशकालीन सफ़ाई कर्मचारियों को जिन्होंने चपरासी पद हेतु निर्धारित कर ली है उन्हें न तो इन रिक्तियों की कोई सूचना देती है और न ही आवेदन पत्र आमन्त्रित करती है -इस तरह द्विपक्षीय समझौते के वरीयता और प्राथमिकता दिए जाने सम्बन्धी प्रावधान का खुला उल्लंघन किया जाता है । 

- औद्योगिक विवाद के लम्बित रहने के दौरान चपरासी बनने की चाह लिए निर्धारित योग्यता अर्जित करने वाले अंशक़ालीन सफ़ाई कर्मचारियों की आशाओं पर तुषारापात करने के उद्देश्य से बैंक ने चपरासी पद हेतु नियुक्ति के लिए आवश्यक जूनियर हाई स्कूल पास होने की योग्यता को बढ़ा कर सीधे 10+2 कर दिया है जिसका एक मात्र उद्देश्य सफ़ाई कर्मियों को चपरासी पद के लाभ से वंचित करना है और ऐसा निर्णय विभेदकारी, अनुचित, ग़ैर क़ानूनी और अवैध है । 

- बैंक में ऐसे बहुत से कर्मचारी हैं जो हाई स्कूल पास योग्यता के साथ क्लर्क के रूप में चपरासी पद से पदोन्नत हुए हैं और उनमें से कई तो विशेष वेतन वाले पदों पर कार्य कर रहे हैं -यह वास्तव में स्तब्धकारी है कि इस तरह पदोन्नति पाए क्लर्क से अधिक योग्यता वाले कर्मचारी को उनके नीचे चपरासी के रूप में बैंक कार्य करवाना चाहती है । 

- अंशक़ालीन कर्मचारियों में से बहुत से ऐसे हैं जो लीव गैप या स्टाप गैप व्यवस्था में अस्थाई रूप से बिना अतिरिक्त वेतन के चपरासी के रूप में इस आशा के साथ काम कर रहे हैं कि एक दिन बैंक उनके काम से खुश होकर चपरासी के रूप में पदोन्नति देगी -ये काम के साथ साथ अपनी शैक्षिक योग्यता भी बैंक में अपना कैरियर बनाने के उद्देश्य से अर्जित कर रहे हैं - भला ऐसे अंशकालीन कर्मचारियों को जिन्होंने चपरासी के रूप में काम कर बैंक कार्य में अपनी दक्षता और शैक्षिक योग्यता दोनों प्रमाणित कर दी हैं उन्हें चपरासी पद पर समायोजित करने और पद के लाभ देने से परहेज़ क्यों है ? ये लोग तो चपरासी पद पर नई नियुक्ति पाने वाले लोगों से कहीं बेहतर तरीक़े से काम कर सकते हैं ।


क्या क्या मिला अवार्ड के ज़रिए ? 

(1) बैंक द्वारा न्याय निर्णय हेतु सरकार द्वारा भेजे गए प्रश्नों पर उठाई गयी तकनीकी आपत्तियों को विद्वान पीठासीन अधिकारी द्वारा तर्कों के साथ ख़ारिज कर दिया । (पैरा 31 व पैरा 32) 

(2) यूनियन द्वारा अंशकालीन कर्मचारियों को चपरासी पद पर पदोन्नति के लाभ से वंचित करने के उद्देश्य से बिना किसी सूचना के सीधे रोज़गार कार्यालय से नाम मँगवा कर द्विपक्षीय समझौते और भारत सरकार के निर्देशों की अनदेखी की विवेचना विद्वान पीठासीन अधिकारी ने पैरा 33 से 40 तक की है और पैरा 41 और 42 में अपना निष्कर्ष और आदेश इस प्रकार दिया है :






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