पेंशन रेगुलेशन अधिकारियों और कर्मचारियों पर एक समान तरीके से लागू हैं फिर भी IBA की शह पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक रेगुलेशन 22 के संबंध में अधिकारियों और कर्मचारियों में विभेद कर रहे हैं। एस के कूल बनाम बैंक ऑफ बड़ौदा और गिरीश शुक्ला बनाम बैंक ऑफ बड़ौदा के मामले में उच्चतम न्यायालय ने रेगुलेशन 22 की धज्जियां उड़ा दीं। अवैधानिक आईबीए को एक दूसरे का परस्पर हित साधने वालों ने इतना शक्तिशाली बना दिया है कि उसने उच्चतम न्यायालय के फैसले की अपने तरीके से व्याख्या करते हुए सभी बैंकों को 38 जून को परिपत्र जारी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कर्मकारों के मामले में लागू कर दिया जाए क्योंकि जिन दो कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय आया है वे कर्मकार थे, आईबीए ने अपने परिपत्र में यह भी कहा कि रेगुलेशन 22 को संशोधित किया जाना है। तब से आज तक सात वर्ष से ऊपर की अवधि निकल गई लेकिन रेगुलेशन 22 में कोई संशोधन नहीं किया गया।
इसी बीच पूर्व यूनाइटेड बैंक के कर्मकार श्री स्वप्न कुमार मलिक का मामला कलकत्ता उच्च न्यायालय पहुंचा, श्री मलिक के पास पेंशन की पात्रता होते हुए भी यूनाइटेड बैंक ने इसी रेगुलेशन 22 को आधार बनाते हुए यह कह कर पेंशन देने से मना कर दिया कि उन्होंने बैंक सेवा से त्याग पत्र दिया है, इसलिए पेंशन के हकदार नहीं है। कलकत्ता उच्च न्यायालय एक एकल जज और खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय के अनेक फैसलों की व्याख्या करने के बाद बैंक की दलील को ठुकराते हुए कहा कि न केवल श्री मलिक को पेंशन दो बल्कि रेगुलेशन 22 को तीन महीने में संशोधित भी करो। जब तक फैसला आया यूनाइटेड बैंक पंजाब नैशनल बैंक में मर्ज हो चुकी थी, पीएनबी मामले को उच्चतम न्यायालय ले गई और कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के अमल पर रोक लगवाने में कामयाब भी हो गई।
यदि वास्तव में बैंकिंग उद्योग में UFBU कर्मचारियों की हितैषी होती तो उसने 30.06.2015 और कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर रेगुलेशन 22 में बदलाव हेतु दवाब बनाया होता या फिर स्वप्न कुमार मलिक की सहायता के लिए आगे आती। एक साधारण कर्मचारी असीम शक्तियों से युक्त बैंक प्रबंधन के खिलाफ एक सीमा तक ही लड़ सकता है और इस सीमा को ध्यान में रखते हुए ही तो ट्रेड यूनियन अस्तित्व में आई हैं। UFBU के नेताओं को बताना चाहिए कि ऐसे अनेकानेक कर्मचारी जिन्होंने महीने दर महीने पेंशन फंड में राशि जमा की है, जिन्होंने पेंशन के लिए निर्धारित सेवा अवधि पूरी कर ली है और अपने अंशदान के आधार पर पेंशन पाने के अधिकारी बने हैं, भला उनके अंशदान का पैसा गया कहां? जिन्होंने बैंक को वित्तीय क्षति पहुंचाई है, उन्हें पेंशन से वंचित किया जाए समझ आता है लेकिन जिनके किसी भी कृत्य से बैंक को वित्तीय हानि नहीं हुई भला उन्हें पेंशन से वंचित किया जाना और उनके अंशदान को हड़प लेना कहां का न्याय है?
वी बैंकर्स के सहयोगी संगठन All Bank Employees in Distress ने न केवल श्री मलिक की वित्तीय सहायता की, उनके लिए वकील का प्रबंध किया बल्कि खुद और कुछ ऐसे साथियों को पक्षकार बनवा दिया जिन्हें पेंशन से वंचित किया गया है।
UFBU की आईबीए के प्रति असीम भक्ति, इन कर्मचारियों के प्रति उदासीनता को देखते हुए वी बैंकर्स ने एक जाग्रत और प्रहरी संगठन की भूमिका अदा करते हुए इस मामले में औद्योगिक बाद दायर कर रेगुलेशन 22 को संशोधित करने की मांग जोर शोर से उठाई। आज तीसरे दौर की वार्ता के बाद लगभग सभी बैंकों ने वी बैंकर्स द्वारा उठाए गए वाद पर अपने जवाब लगा दिए हैं अब पांच जनवरी को वी बैंकर्स को बैंकों को प्रत्युत्तर देना है। आज की कार्यवाही हम साझा कर रहे हैं।
सीमित साधनों से असीम प्रयास के जरिए हम भरसक कोशिश कर रहे हैं कि बैंक कर्मियों की आंखें खुलें और वे आगे बढ़ कर वी बैंकर्स के आंदोलन को गति दें !