We Bankers को मिज़ोरम रुरल बैंक से जुड़ी बैंक कर्मियों की दर्द भरी दास्तान मिली है-चूँकि यह दास्ताँ देश की एकता और अखण्डता, अनेकता में एकता वाली हमारे देश की विशेषता और देश के संविधान की अस्मिता से जुड़ी है इसलिए इस महान देश से प्यार करने वाले प्रत्येक भारतीय को इसे जानना और समझना ज़रूरी है ।
यह सच्ची कहानी है देश के उन युवाओं की जिन्होंने बेरोज़गारी से जूझते देश में अपने अपने घरों से सुदूर मिज़ोरम रुरल बैंक में आईबीपीएस की प्रतिष्पर्धी परीक्षा पास करने और अनेकानेक औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद मिज़ोरम रुरल बैंक में नौकरी पायी है और आज देश विरोधी ताक़तों की वजह से उनकी नौकरी पर बन आयी है, उन्हें नौकरी से निकाले जाने का मंच तैयार है, इन अभागे कर्मचारियों ने नबार्ड, प्रयोजक बैंक भारतीय स्टेट बैंक, बैंकों पर नियंत्रण रखने वाले वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा प्रभाग के साथ साथ ग्रामीण बैंकों के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली बहुमत प्राप्त यूनियन तक से गुहार लगाई है लेकिन देश विरोधी स्थानीय ताक़तों के आगे अभी तक किसी की नहीं चल पायी है, भय और आतंक के साये में इनमें से कोई भी कर्मचारी सामने आने को तैयार नहीं है ल क्या वजह है - इसे भी समझना ज़रूरी है । अनेक ग्रामीण बैंकों की तरह इस बैंक में भी नौकरी के लिए शैक्षिक योग्यता के साथ साथ स्थानीय भाषा में महारत हांसिल करना ज़रूरी है । इस महारत को हांसिल करने के लिए इन युवाओं पछूँगा विश्वविद्यालय से स्थानीय मिजो भाषा में प्रवीणता के लिए तीन महीने के ऑनलाइन कोर्स को सफलतापूर्वक पास कर लिया है, यह पछूँगा विश्वविद्यालय मिज़ोरम विश्वविद्यालय का घटक है और यूजीसी के अन्तर्गत संचालित है, इस तरह इस विश्वविद्यालय से स्थानीय भाषा में महारत हांसिल किए जाने वाले प्रमाण पत्र को क़ानूनी तौर पर प्रामाणिक माना जाना चाहिए । इसके अतिरिक्त लगभग दो साल तक स्थानीय ग्रामीण लोगों के बीच रहते और काम करते हुए यह युवा स्थानीय भाषा बोलने और समझने में भी सक्षम हो गए हैं, बैंक के ग्राहकों द्वारा स्थानीय भाषा न समझ पाने और उसकी वजह से ग्राहकों को परेशानी होने जैसी कोई भी शिकायत इन युवाओं के ख़िलाफ़ कभी दर्ज नहीं हुई है । इन सबके बावजूद भाषा को आधार बना कर इन युवाओं को नौकरी से निकाल कर पुनः बेरोज़गार बनाने की तैयारी कर ली गई है । स्थिति कितनी भयानक है - इससे परिचित करवाना हम अपना फ़र्ज़ समझते हैं ।
पछूँगा विश्वविद्यालय 16 नवम्बर मिजो भाषा प्रशिक्षण परीक्षा का परिणाम घोषित करता है, इस परिणाम में मिज़ोरम रुरल बैंक में कार्यरत युवा सफल घोषित हुए हैं, इस परिणाम के आधार पर पछूँगा विश्वविद्यालय प्रमाण-पत्र भी जारी कर देता है । बस इसके बाद शुरू होता है देश और संविधान विरोधी ताक़तों का भयावह खेल - मिज़ोरम ग्रामीण बैंक के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली मिज़ोरम रुरल बैंक officers association और मिज़ोरम रुरल बैंक स्टाफ़ association रक्षक से भक्षक की भूमिका अदा करने लगती हैं, वे बैंक के अध्यक्ष के ख़िलाफ़ भाई भतीजावाद का आरोप लगाती हैं और 24 नवम्बर को ये तताकथित ट्रेड यूनियन स्थानीय समाचार पत्र में प्रेस विज्ञप्ति में कहती हैं कि इन युवाओं ने स्थानीय भाषा में महारत हांसिल नहीं की है, माँग करती हैं कि इन युवाओं को नौकरी से निकाला जाए । एक प्रसिद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता इसी 24 नवम्बर को बैंक के अध्यक्ष को क़ानूनी नोटिस देता है । इसी दिन अलगाववादी People’s Conference Party के लोग पछूँगा विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर दवाब बनाते हैं, धमकियाँ देते हैं और पछूँगा विश्वविद्यालय के अधिकारियों से मिज़ोरम रुरल बैंक के अध्यक्ष के नाम एक पत्र हस्ताक्षरित करवा लेते हैं जिसमें लिखा होता है कि 16 नवम्बर मिजो भाषा प्रशिक्षण परीक्षा के परिणाम के आधार पर जारी प्रमाण पत्र निरस्त किया जाता है । एक साथ एक ही दिन 24 नवम्बर को ये सारे घटनाक्रम सुनियोजित तरीक़े से घटित होते हैं और एकाएक मिज़ोरम रुरल बैंक में देश के बाँकी हिस्सों से रोज़गार पाने वाले युवाओं को भाषा के आधार पर नौकरी से निकाले जाने का ताना बाना बन लिया जाता है ।
इस मामले का सबसे दुखद पहलू All India Regional Rural Bank Employees Association जो कि ग्रामीण बैंक कर्मचारियों की सबसे सशक्त यूनियन है द्वारा अपनाया गया नज़रिया है । इस यूनियन के सेक्रेटेरी जेनरल श्री एस वेंकटेस्वर रेडी ने 5 अक्टूबर को वित्तीय सेवा प्रभाग में अतिरिक्त सचिव श्री संजीव कौशिक को देश की वित्त मंत्री महोदया के बयान का अर्थ का अनर्थ करते हुए एक पत्र लिखा है जिसमें देश और संविधान विरोधी ताक़तों का विरोध करने की जगह उनसे लगभग सहमति व्यक्त की गई है, आइए देखते हैं कि ग्रामीण बैंक कर्मचारियों की सबसे बड़ी यूनियन के सबसे बड़े नेता जी का नज़रिया क्या है-नेताजी लिखते हैं:
वी बैंकर्स का सपना है कि ग्रामीण बैंकें प्रयोजक बैंकों के नियंत्रण से बाहर निकलें, उसकी एक प्रमुख माँग है कि राष्ट्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना हो, अन्य बैंकों की भाँति ग्रामीण बैंक अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाएँ, प्रतिष्पर्धी बनें, प्रत्येक शहर में भी उनकी शाखाएँ खुलें-यहाँ तो ग्रामीण बैंक कर्मचारियों की सबसे बड़ी यूनियन के सबसे बड़े नेताजी ग्रामीण बैंकों को स्थानीय बैंक बनाने पर तुले हुए हैं-वित्त मंत्री महोदया ने यह कहा है कि बैंक अपने कर्मचारियों को स्थानीय भाषा में ट्रेनिंग दें ताकि वे ग्राहकों की बेहतर सेवा कर सकें - वित्त मंत्री महोदय ने यह नहीं कहा है कि बैंक केवल स्थानीय लोगों को रोज़गार दें और भाषा के आधार पर सौतेला व्यवहार किया जाए । अगर बैंक एक बैंक की कार्य-प्रणाली से बिलकुल अनजान व्यक्ति को ट्रेनिंग देकर बैंक के कार्य में कुशल बना सकते हैं तो वे अपने कर्मचारियों को स्थानीय भाषा में ट्रेनिंग दे कर उस भाषा में भी कुशल बना सकते हैं, देश के युवा जहाँ विभिन्न विषयों की परीक्षा पास करते हैं, वे किसी भी राज्य की स्थानीय भाषा को भी बहुत कम समय में सीख सकते हैं और ऐसा होता भी रहा है । भारत विविधताओं से भरा देश है, जनगड़ना से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार भारत में 19,500 से भी अधिक मात्र भाषाएँ हैं, 121 ऐसी भाषाएँ हैं जो दस हज़ार से अधिक लोगों के द्वारा बोली जाती हैं । मिज़ोरम की कुल जनसंख्या लगभग दस लाख है यानि देश के अनेक शहरों से भी कम । मिजोरम में साक्षरता की दर भारत में सबसे अधिक है । फरवरी, १९८७ को यह भारत का २३वां राज्य बना। भारत सरकार और मिज़ो नेशनल फ़्रंट के बीच १९८६ में हुए ऐतिहासिक समझौते के फलस्वरूप २० फ़रवरी १९८७ को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। संविधान में परिवर्तन करते हुए Article 371-G जोड़ कर मिज़ोरम को विशेष दर्जा दिया गया। हर भारतीय को ख़ूबसूरत मिज़ोरम से प्यार है-वहाँ रहने वाले लोगों से लगाव है । देश की एकता और अखण्डता के लिए ज़रूरी है कि देश के नागरिक सही मायनों में एक दूसरे से जुड़ें, जहाँ रोज़गार मिले वहाँ बसें, वहाँ के स्थानीय लोगों से घुलें मिलें, वहाँ की भाषा और संस्कृति को आत्मसात करें । इसके उलट यदि देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने वाले लोगों के साथ वैसा सौतेला व्यवहार किया जाएगा जैसा मिज़ोरम रुरल बैंक में किया जा रहा है, तब तो देश के संविधान की आत्मा ही मर जाएगी, देश की विभिन्नता में एकता वाली हमारी विशेषता वाली हमारी पहचान का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा - इस तरह का घटनाक्रम अगर कश्मीर में घट रहा होता तो देश भर में हाय तौबा मच जाती, मिज़ोरम में घट रहा है तो ख़ामोशी है-केन्द्रीय सरकार समेत कोई भी आगे बढ़ कर इन आभागे युवाओं के समर्थन में नहीं आया है । हम इस तरह की चुप्पी के ज़रिए अलगाववादी ताक़तों के समर्थन की घोर निन्दा करते हैं, हम ग्रामीण बैंकों की सबसे बड़ी यूनियन की उस माँग का भी प्रबल विरोध करते हैं जिसमें आईबीपीएस के ज़रिए भर्ती की जगह स्थानीय लोगों की भर्ती की माँग की गई है, हम प्रयोजक स्टेट बैंक से यह माँग करते हैं कि वह वित्त मन्त्री महोदया के बयान पर खरा उतरते हुए मिज़ोरम रुरल बैंक में कार्यरत इन युवाओं के मिजो भाषा में पारंगत होने की निष्पक्ष जाँच करे, कमी पाए जाने पर उन्हें मिजो भाषा में पारंगत करे । हम प्रयोजक स्टेट बैंक प्रबन्धन से यह भी माँग करते हैं कि मिज़ोरम रुरल बैंक के उन अधिकारी और कर्मचारी नेताओं को अन्य प्रदेशों में स्थानांतरित करे जो भाषा को आधार बना कर इन युवाओं को नौकरी से निकाले जाने का अनावशयक दवाब बना रहे हैं, पृथकतावादी इन नेताओं को उस राज्य की भाषा में दक्ष बनाए जिस राज्य में उनका ट्रान्स्फ़र किया जाए । हम प्रत्येक बैंक कर्मी विशेष तौर पर ग्रामीण बैंक कर्मियों से अनुरोध करते हैं कि वे मिज़ोरम रूरल बैंक में कार्यरत इन युवाओं के समर्थन में आगे आएँ, फ़ेसबुक, ट्विटर और पूरे सोशल मीडिया में पृथकतावादी ताक़तों के ख़िलाफ़ इतना ज़ोरदार अभियान चलाएँ कि सोयी हुई देश की सरकार जागे और इस मुद्दे पर कड़ा रूख अपनाते हुए आवश्यक कार्यवाही करे । हम इन युवाओं को विश्वास दिलाते हैं कि वी बैंकर्स उनके साथ है और उनके हितों की रक्षा के लिए उससे जो कुछ बन पड़ेगा, अवश्य करेगा ।