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Wednesday, September 2, 2020

आजकाल सरकारी बैंक वाले ग्राहक खुद को दिलीप कुमार और बैंक कर्मी को अनारकली समझते है

आज सरकारी बैंकों में आने वाले ग्राहकों के बारे में बात हो जाये कुछ ...


मेरी पहली राय तो ये ही है कि कोई भी ग्राहक खराब नही होता, समय और परिस्थिति का इसमे महत्वपूर्ण रोल होता है, ये मत भूलिए की हम लोग भी किसी डिपार्टमेंट में जाते है तो वहाँ के ग्राहक होते है,


किसी को समझने से पहले खुद उस किरदार में घुसना पड़ता है, हम लोग जब खुद किसी डिपार्टमेंट में ग्राहक बन कर जाते है तो उसकी एक छवि बना कर जाते है कि यहाँ पर हमें इनसे मिलना है, यहां पर इतना चढ़ावा लगेगा, यहाँ पर अगर चिल्लाया तो काम 2 महीने आगे खिसक जाएगा उल्टा रेट भी शायद डबल हो जाये ।।

इसलिए ऐसी जगह हमारी कोशिश होती है बस कैसे भी हमारा काम हो जाये , हम उनकी गलत बात में भी हामी भरते है और वहाँ से बिना शिकायत के निकल जाते है


वही मान लीजिये रास्ते मे लौटते समय एक रिक्शा वाले से हम शायद Rs 10 के लिए लड़ने लगते है और 10 रुपया बचा कर या कहो उस गरीब का छीनकर अपनी मरदानगी पर खुद से ठप्पा लगाने की नाकाम कोशिश करते है ।।


लब्बोलुआब ये है कि हम चाहे ग्राहक हो, कर्मचारी हो, बॉस हो, जो भी हो हम अपनी मर्दानगी केवल कमजोर के ऊपर ही दिखाते है .. क्योकि हम जानते है ये मेरे सामने कुछ कर नही पायेगा


यही हाल बैंक में आये हुए ग्राहकों के साथ भी है, कई बार मैंने देखा है कुछ ग्राहक बैंक में आकर कर्मचारियों के साथ बात करते है, अपना काम बताते है और बातो बातो में ही काम कर के चले जाते है


पर अब आजकाल ज्यादातर ग्राहक खासकर सरकारी बैंक वाले ग्राहक अपने को दिलीप कुमार और बैंक कर्मी को अनारकली समझते है कि कोई भी उल जलूल काम करवा लेंगे, वो बैंककर्मी को यहाँ तक कहते है कि मेरे एकाउंट में जो 1000 है ना उसी से तुमको वेतन मिलता है,

बात यही पर खत्म हो जाती अगर उसी समय उस शाखा के सभी बैंककर्मी मिलकर उसको इस तरह से बैंककर्मी की सार्वजनिक बेइज्जती करने के कारण उसका खाता बंद करने की सिफारिश करते शाखा प्रबंधक से ...


पर होता इसका उल्टा है, जिस ग्राहक ने ऐसा बोला हम उसके काम को प्राथमिकता देने लगते है और बाकी लोगो से पहले उसका काम करते है, बैंक कर्मी का नजरिया उस टाइम ये रहता है कि ऐसे लोगो का काम करके जल्दी से भीड़ हटाओ पर असल मे इसका उल्टा प्रभाव पड़ता है,


लाइन में दूसरे खड़े ग्राहक जो अभी तक शांत रहते है वो प्रोत्साहित होते है और उनके दिमाग मे ये धर जाता है बैंक एक ऐसी संस्था है जहाँ पर चिल्ला कर लड़ कर काम करवाया जा सकता है, यही बैंक की छवि वो अपने मित्रों से बताते है कि अगर कॉम ना हो बस एक बार जिरख देना जोर से ... और तब भी ना हो तो एक कंप्लेन मार देना उस स्टाफ की ...


यहाँ इस मौके पर पर मैं ये जरूर लिखना चाहूंगा कि एक बैंक कर्मचारी की कभी कोई करी शिकायत पर भले कार्रवाई ना हुई हो पर ग्राहक सेवा के नाम पर तुरंत उस ग्राहक की झूठी ( ज्यादातर झूठी ही होती है) शिकायत पर बैंककर्मी की एक्सप्लेनेशन कॉल हो जाती है, मजेदार बात तो तब होती है जब कई बार शाखा प्रबंधक को सब कुछ पता होने के बावजूद ऊपर के दबाव के कारण उसे ना चाहते हुए भी कारवाई करनी पड़ती है ,


इसमे कर्मचारी को ज्यातर बिना खुद की गलती के ग्राहक से माफी मंगवाई जाती है और उसको शिकायत वापस लेने की गुहार लगाई जाती है ।।


एक ग्राहक उस समय अपने को ओबामा बिन लादेन से भी ताकतवर खुद को समझने लगता है और बैंक कर्मी यहाँ तक विवाद ना पहुँचे इसलिए खून के आंसू पी कर काम करते है, क्योकि उस समय उनकी मदद के लिए ना तो स्टाफ आगे आता है ना तो कोई यूनियन .. बल्कि ये लोग ही समझाने लगते है ग्राहकों के मुंह ना लगो, गाली ही तो दी थी कौन सी तुम्हे गोली मारी है


सच मे पिसता है तो लाचार सा एक बैंककर्मी, ये जब एक हद को पार कर जाती हैं तो डिप्रेसन और उसके बाद आत्महत्या जैसे बुजदिली वाले काम भी करने लगता है, वो घर मे कुछ बोल नहीं पाता और न ही अपने सहकर्मियों से क्योकि उसने अपने आत्मसम्मान का बलात्कार होते खुद देखा है ।।


तो आइए आज से शपथ लेते है कि बैंक परिसर के अंदर शुरुवात हम कभी नही करेंगे और अगर किसी ने कर दी तो अपने सहकर्मी का अंत तक साथ देंगे ।।


एक बार ऐसा कर के तो देखो , सब सही हो जाएगा
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