सरकारी बैंक की नौकरी आसान नही होती बाबू ।। एक आग का दरिया है और रोज उस पर चल कर जाना है ।। - We Bankers

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Sunday, August 30, 2020

सरकारी बैंक की नौकरी आसान नही होती बाबू ।। एक आग का दरिया है और रोज उस पर चल कर जाना है ।।

स्टेट बैंक के दो अधिकारी करेंसी चेस्ट के अंदर बैठे है. अंदर से ग्रिल लगा है. दूसरा कोई नहीं है. दोनों के चेहरे से लग रहा है की कुछ ऐसी बात है जो ये दोनों अधिकारी सिर्फ आपस में हीं share कर सकते हैं. सिर्फ पंखे की आवाज़ गुंज रही है, उस सन्नाटे में. दोनों के चेहरे पर पसीने की बूंदें दिखाई दे रही है.पंखे की हवा का कोई असर नहीं है. रात के 9.30 बजे हैं. बैंक के सारे लोग जा चुके हैं. सिर्फ कैश डिपार्टमेंट में काम करने वाले कुछ स्टाफ बाहर बैठकर इन दोनों joint कस्टुडिअन के बाहर निकलने का इन्तजार कर रहें हैं.

पाण्डेय साहेब हमलोग तीन बार पुरा चेस्ट वेरीफाई कर लिए लेकिन 5 लाख रूपये का कहीं पता नहीं चला. आखिर क्या किया जाय. मैंने ये बात कैश ऑफिसर श्री बी बी पाण्डेय को कही. वे बोले की लगता है की हमलोगों को 5 लाख का इंतजाम करना हीं पड़ेगा. ये घटना देवघर SBI मेन ब्रांच की है. मैं वहां 1995 में अकाउंटेंट के रूप में कार्यरत था. तय हुआ की 2.50 लाख 2.50 लाख दोनों आदमी जमा कर देंगे. हालांकि दोनों में से किसी की हैसियत उस समय नहीं थी, उतने रूपये का इंतजाम करने की. किसी से कह भी नहीं पा रहे थे, एक बार हल्ला हो जाय तो दूसरा हीं बवाल शुरू हो जायेगा. सिर्फ कैश का एक मैसेंजर हमलोगों के अलावे इस बात को जानता था. उसने बहुत मिहनत की थी हमलोगों के साथ हिसाब मिलाने में. हमलोगों ने उसे मना कर रखा था, इस बात को किसी को बताना नहीं है. वो काफ़ी समझदार था, उसने बार बार इस बात की चिंता जाहिर की, सर आखिर कैश जायेगा कहाँ. हम तो किसी को अंदर घुसने हीं नहीं देते. रेमिटेंस लेने वाले जो दुसरे ब्रांच से आते हैं उनको बाहर में हीं दे देतें हैं.

रात बहुत हो चुकी थी, हमने पाण्डेय साहेब को कहा की अब चला जाय. कल सात बजे सुबह आईये, मैं भी आ जाता हुं और सुधीर को भी बुला लेता हुं. एक बार और बढियाँ से चेक किया जाय. चिंता की गहरी लकीर माथे पे लेकर हमलोग ब्रांच से निकल पड़े. वहां मैं अकेले रहता था, मेरा परिवार भागलपुर स्थित मेरे मकान में था. बच्चों की पढ़ाई को देखते हुए अकेले रहने का निर्णय लिया था.
डेरा पहुंचा, वहां एक झाजी थे जो खाना मेरा बनाते थे. उन्होंने मुझे खाने के लिए कहा, मैंने कहा आज भूख नहीं है झाजी आप खाना खा लीजिए. क्या बात है सर आप कुछ चिंतित दिखाई दे रहें हैं. मैंने कहा नहीं झाजी आज काम ज्यादा था थक गया हुं. बैंक में कुछ खा लिया था, मैंने उनसे झुठ बोल दिया.

विस्तर पर गया तो नींद नहीं आ रही थी, जोड़ने लगा कहाँ से 2.5 लाख आएगा. पाण्डेयजी तो बोले हैं की हाउसिंग लोन लिए है उसी पैसे को दुंगा, अब घर कहाँ बन पायेगा. उस समय मेरा 1 लाख का ओवरड्राफ्ट बैंक से स्वीकृत था. खैरियत की हमने उसे निकाला नहीं था. कुछ FD थे, बच्चों की पढ़ाई और बेटी की शादी के लिए धीरे धीरे जमा किया था. मेरे हिसाब में 2.50 लाख पुरा आ गया. मन को सकून मिला किसी से मांगने की जरुरत नहीं. दिमाग़ को जब राहत मिली तो सोचते सोचते नींद भी आ गई.

बोझिल मन से सुबह उठा. 6.30 बजे थे.7 बजे बैंक जाना था. समय से हम तीनों पहुँच गए. एक एक करके सारे बिन का नोट हमलोगों ने बाहर करना शुरू किया. 40 बिन थे जिसमें नोट सबमें भरे हुए थे. एक एक बिन से रूपये चेक कर फिर वापस रखा जा रहा था. 25 बिन चेक करने के बाद कोई रिजल्ट सामने नहीं आया. सुधीर 26 वें बिन से रूपये निकल रहा था, उसमें 50 रूपये के बंडल रखे हुए थे. निकालते निकालते सुधीर जोर से चिल्लाया सर मिल गया मिल गया. दरअसल बात ये हुई थी की 50 रूपये वाले नोट के बिन में पीछे तरफ 50 की जगह 100 रूपये के नोट गलती से रखा गया था. 50 का दस बंडल नोट 5 लाख होता है. उसकी जगह अगर 100 रूपये का नोट 10 बंडल रख्खा जाय तो तो 10 लाख हो जायेगा. बार बार बाहर से हीं 50 के नोट को मानकर हमलोगों का काउंटिंग चल रहा था और हमलोगों के हिसाब में 5 लाख की कमी आ रही थी. 1995 में पांच लाख रूपये का अच्छा खासा महत्त्व था. आप सोचिये की जो व्यक्ति 2.50 लाख रुपया अपने मन के हिसाब से दंड दे चुका हो उसके सामने इस तरह के परिस्थिति में अंदर का एहसास क्या हुआ होगा. हम दोनों आदमी कुर्सी से उछल पड़े. अपने से दोनों उस 100 रूपये के बंडल को बार बार निहारने लगे हाथों में लेकर देखने लगे. लगा की जीवन में पहली बार 100 रूपये के नोट का बंडल देखे हैं. जीवन में इतने बड़े दुःख से उबर कर ख़ुशी पाने का एहसास स्वप्न में भी आदमी को मिल जाय तो रोमांचित हो जाय. हमलोग तो साक्षात् उस पल को महसूस कर रहे थे. उस समय सुधीर मैसेंजर हमलोगों के लिए ईश्वर स्वरूप लग रहा था. मन में आया की वो कुछ भी मांगे तो हमलोग दे देते. लेकिन जब उसने कहा की सर मैं भी रात भर नहीं सोया हुं. रूपये आपलोग दे देते लेकिन मैं अपने आपको कभी माफ नहीं कर पाता. उसके उस एहसास को देख हमलोगों को साहस नहीं हुआ कुछ देने का. अगर कुछ देते तो उसकी संवेदना पर कुठाराघात होता. हर चीज पैसे से नहीं तौली जा सकती. कुछ ऐसी बातें सामने आती हैं जिसका कीमत आंकना आपके बस की बात नहीं.

बैंक में कैश डील करने वाले सभी लोगों को जब दिनभर का हिसाब मिल जाता है तभी उनकी सांसों गति सही होती है. यही है बैंक की नौकरी|
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