उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव कोविद महामारी के दूसरे चरण में आने पर भी होने वाले है, लगभग सभी सरकारी कर्मचारी यहाँ तक की महिलाओं की भी इलेक्शन डयूटी लगाई गई है ।।
अब सवाल ये है कि इस पंचायत चुनाव को निजीकरण की वकालत करने वाले नेता, मीडिया, जनता व बड़े बड़े उद्योगपति इसे प्राइवेट वेंडर से क्यो नही कराते है या उसके लिए दबाव बनाते है , क्यो नही इसकी जिम्मेदारी किसी प्राइवेट एजेंसी को दी जाती है क्योंकि सरकार की नजर में तो सरकारी कर्मचारी सुस्त, भ्रस्टाचारी, चोर व आलसी होते है , वो एक काम को महीनों टालते है जबकि प्राइवेट वाले काम तो बहुत अच्छा और ईमानदारी से करते है ।।
आज जब हर चर्चा परिचर्चा में निजीकरण मुख्य मुद्दा है व प्राइवेट होना चाहिए सब कुछ इसके पीछे दलील दी जाती है तो किसी भी सरकार के लिए चुनाव जैसा महत्वपूर्ण कार्य क्यो इन लापरवाह आलसी व भ्रस्टाचारी सरकारी कर्मचारियों से कराया जा रहा है
यदि निजीकरण जरूरी है व प्राइवेट व्यक्ति ईमानदार है तो चुनाव जैसे महत्वपूर्ण कार्य सरकारी कर्मचारी से क्यो ??
इतिहास गवाह है कि जब भी देश मे कोई महत्वपूर्ण कार्य हुआ है तो प्राइवेट प्लेयर आगे नही आते है हमेशा सरकारी कर्मचारी ही आगे खड़ा होता है ।।
देश पर कोई पड़ोसी ने हमला किया तो भारतीय सेना खड़ी रहती है जो कि सरकारी है ।।
नोटबन्दी हुई तो बैंककर्मचारी दिन रात एक करके 50 दिन में पूरे देश की पुरानी नोट को बदला वो सरकारी कर्मचारी
रिकॉर्ड जनधन एकाउंट खोल कर गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में डलवाने वाले सरकारी बैंक ही थे न कि प्राइवेट बैंक
विश्व के सबसे बड़ा मेला महाकुंभ प्रयागराज 2019 को सकुशल सम्पन्न कराने वाले सरकारी कर्मचारी ही थे
और एक बार फिर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े चुनाव को कराने के साथ अब पंचायत चुनाव भी सरकारी कर्मचारी ही कराते है ।। ऐसे अनगिनत उदाहरण आप खुद गिना सकते है ।।
आप कितना भी रिसर्च कर लीजिए, कितना भी तर्क दीजिये लेकिन देशसेवा व महत्वपूर्ण कार्य को जब भी कराने की बात की जाती है प्राइवेट दूर दूर तक नही दिखते है ।।
इसलिए देश को चलाने वाले सरकारी कर्मचारी ही है , निजीकरण तो कुछ पूंजीवादी ताकतों को ही फायदा पहुचायेगा इसलिए निजीकरण का खुल कर विरोध कीजिये ।।