बैंक प्रबंधन के द्वारा कर्मचारियों की मर्जी के बिना सीधे एरियर से लेवी काटने के लिए गए गलत फैसले को औधोगिक विवाद अधिनियम के अंर्तगत अनुचित श्रम प्रणाली बताते हुए नियमानुसार कार्यवाही करने का पत्र WeBankers के पंजीकृत कर्मचारी व अधिकारी संगठनो के मुख्य फेडरेशन संगठन *United Forum of We Bankers* के द्वारा जारी किया गया और बैंक प्रबंधन के द्वारा मात्र कुछ घंटों का समय देकर कर्मचारियों को लेवी न काटने का लिखित पत्र देने के लिये बोला गया था और पत्र न मिलने की स्तिथि में बैंक प्रबंधन द्वारा लेवी यूनियनों के द्वारा बताये गए प्रतिशत से काटने का सर्कुलर वी बैंकर्स के हर स्तर पर पुरजोर विरोध के बाद वापस दिनांक 16 जनवरी के पत्र के द्वारा वापस ले लिया गया....
बैंक के पहले लेवी काटने के सर्कुलर में उल्लिखित महान यूनियनों ने जिन्होंने वेतन समझौते में महान बढ़ोत्तरी करके बहुत अधिक 2.5% का लोड फैक्टर सभी बैंकर्स को दिलाया है जिससे बैंक कर्मचारियों की तनख्वाह इतनी बढ़ गयी कि नेताओ को लेवी लेना अपना हक समझ आने लगा और तभी प्रबंधन को पीठ पीछे लेवी काटने का पत्र भेज दिया, पर सच को सच कहने की क्षमता रखने का जज्बा रखने वाले और बैंकर्स के हर मुद्दे को हर फोरम पर पूरी ताकत से हर प्लेटफॉर्म पर उठाने वाले और आखरी दम तक लड़ने वाले आप सब के संगठन वी बैंकर्स ने इस गलत को सही कराने की लड़ाई का बीड़ा बैंक के सर्कुलर निकालने के तुरंत ही दिखाया और पूरी तन्मयता के साथ सभी सोशल मीडिया और बैंक के CMD को पत्र लिखते हुए अपनी इक्षाशक्ति दर्शा दी कि वी बैंकर्स और यूनियनों की भांति नही है और तुरंत बैंक प्रबंधन को कर्मचारियों के एरियर से यूनियनों की लेवी सीधे काट लेने की बनाई गई नीति को तत्काल बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा ...
WeBankers बैंक ऑफ इंडिया के उच्च प्रबंधन को बहुत धन्यवाद देता है कि हमारे संगठन के द्वारा उठाई गयी नियमानुसार मांग को माना व ऑनलाइन HRMS के माध्यम से यूनियनों को लेवी देने के फैसले को बैंक कर्मचारियों के ऊपर छोड़ा गया कि वो अगर लेवी देना न चाहते हो तो HRMS के द्वारा लेवी न देने के विकल्प को चुन सकते है।
बैंक कर्मचारियों के लिए WeBankers हर कदम पर लड़ने का जज़्बा रखता है और बैंक ऑफ इंडिया के इस सर्कुलर के द्वारा सभी बैंकर्स को वी बैंकर्स ने फिर से ये दिखा दिया है कि गलत के खिलाफ आवाज उठाना सीखो और सही राह पर जीत अवश्य मिलती है क्योकि अपने हक की आवाज को न उठाने वाले भी दोषी है और अभी बैंकर्स के लिए आगे ऐसे और सारी बाधाएं आ सकती है जैसे प्राइवेटाइजेशन , मर्जर आदि और इन मुद्दों पर फिर से स्थापित यूनियने जैसे पहले मर्जर आदि के नाम पर गुमराह करके और फिर से हफ्ते के बीच के 1 दिन की हड़ताल की कॉल देगे बैंकर्स का वेतन कटेगा , अगले दिन नेताओ की जुबानी ही सिर्फ हड़ताल सफल होगी पर न तो ऐसी हड़तालों से सरकार को कोई फर्क पड़ेगा न ही बैंक प्रबंधन को..........
याद तो होगा ही बॉब के साथ देना विजया के मर्जर के पहले 1 दिन की हड़ताल की कॉल के अगले ही दिन सरकार की मर्जर को मंजूरी देने का सर्कुलर, बाकी अभी हाल में मिला BPS का मात्र 2.5% लोड फैक्टर और 5 दिन बैंकिंग का हवा हवाई होना, मिनिमम वेज पर आधारित सैलरी का झुनझुना दिखाने वाला यूनियन का चार्टर ऑफ डिमांड, स्पेशल पे मर्जर का नाटक, पेंशन का पुनर्निर्धारण मंचन, अधिकारियों के लिए कार्य के घण्टे का निर्धारण करवाने के लिए जीने मरने की कसमें खाने वाले नेता आदि तो भूले न होंगे और भूलियेगा भी न क्योकि अभी वी बैंकर्स अपने CPC और इन सब मुद्दों पर 4 फरवरी को NIT मुम्बई में 9 स्थापित यूनियनों , सभी बैंक प्रबंधनों, भारत सरकार, IBA के खिलाफ अपनी मुख्य लड़ाई में फिर से बैंकर्स की आवाज उठाने जा रहा है मुम्बई के राष्ट्रीय औधोगिक न्यायाधिकरण (NIT) भारत सरकार, श्रम मंत्रालय के इस कोर्ट में अब आगे की लड़ाई की भूमिका बनने वाली है इस लिए ऐसी लेवी चन्दा वाली यूनियन को लेवी न देकर आम बैंकर्स इन यूनियन को जता दे कि आपके इस ऐतिहासिक समझौते से तो अच्छा हमारी ही तरह BPS लेने वाले LIC व insurane के अधिकारी व कर्मचारी है जिनकी यूनियन की डिमांड ही 40% बढ़ोत्तरी है और प्रबंधन के 15% के पहले ही ऑफर को सिरे से नकार चुके है पर यहाँ बैंकिंग इंडस्ट्री में तो स्थापित नेता ही IBA को माई बाप मान कर उस असंवैधानिक व गैर पंजीकृत इकाई के आगे नतमस्तक है, इसलिए अपने अधिकारों को और अपनी ताकत को पहचाने और ऐसी मृतप्राय और समर्पणकारी यूनियनों को लेवी न देकर जता दे कि बैंकर्स अब बदलाव चाहता है बैंकिंग इंडस्ट्री में।
याद तो होगा ही बॉब के साथ देना विजया के मर्जर के पहले 1 दिन की हड़ताल की कॉल के अगले ही दिन सरकार की मर्जर को मंजूरी देने का सर्कुलर, बाकी अभी हाल में मिला BPS का मात्र 2.5% लोड फैक्टर और 5 दिन बैंकिंग का हवा हवाई होना, मिनिमम वेज पर आधारित सैलरी का झुनझुना दिखाने वाला यूनियन का चार्टर ऑफ डिमांड, स्पेशल पे मर्जर का नाटक, पेंशन का पुनर्निर्धारण मंचन, अधिकारियों के लिए कार्य के घण्टे का निर्धारण करवाने के लिए जीने मरने की कसमें खाने वाले नेता आदि तो भूले न होंगे और भूलियेगा भी न क्योकि अभी वी बैंकर्स अपने CPC और इन सब मुद्दों पर 4 फरवरी को NIT मुम्बई में 9 स्थापित यूनियनों , सभी बैंक प्रबंधनों, भारत सरकार, IBA के खिलाफ अपनी मुख्य लड़ाई में फिर से बैंकर्स की आवाज उठाने जा रहा है मुम्बई के राष्ट्रीय औधोगिक न्यायाधिकरण (NIT) भारत सरकार, श्रम मंत्रालय के इस कोर्ट में अब आगे की लड़ाई की भूमिका बनने वाली है इस लिए ऐसी लेवी चन्दा वाली यूनियन को लेवी न देकर आम बैंकर्स इन यूनियन को जता दे कि आपके इस ऐतिहासिक समझौते से तो अच्छा हमारी ही तरह BPS लेने वाले LIC व insurane के अधिकारी व कर्मचारी है जिनकी यूनियन की डिमांड ही 40% बढ़ोत्तरी है और प्रबंधन के 15% के पहले ही ऑफर को सिरे से नकार चुके है पर यहाँ बैंकिंग इंडस्ट्री में तो स्थापित नेता ही IBA को माई बाप मान कर उस असंवैधानिक व गैर पंजीकृत इकाई के आगे नतमस्तक है, इसलिए अपने अधिकारों को और अपनी ताकत को पहचाने और ऐसी मृतप्राय और समर्पणकारी यूनियनों को लेवी न देकर जता दे कि बैंकर्स अब बदलाव चाहता है बैंकिंग इंडस्ट्री में।