बदलते वक़्त के साथ नई तकनीक के आने से सेवा में तेज़ी, सुगमता और सुधार के बजाय काम यदि और अधिक धीमा, ज़्यादा जटिल, सेवा की गुणवत्ता और बदत्तर हो जाए तो ऐसी तकनीक का क्या फायदा? #Finacle10 ऊपर से सोने पे सुहागा #NoRecruitmentOfBankStaffs नतीजा ग्राहक प्राइवेट बैंकों की ओर आकर्षित हो रहे है ।
आज किसी भी बैंक में चले जाइये सर्वर नही है का बोर्ड मिल जाएगा , जहाँ एक ओर हम इस टेक्नोलॉजी के दम पर घर घर बैंकिंग पहुचाने की बात करते है वहाँ सच्चाई ये है कि बैंक के अंदर नेटवर्क नही रहता ,
ये कैसी टेक्नोलॉजी है जहाँ मिनटों में होने वाले काम के लिए घण्टो लगता है केवल एडवांस टेक्नोलॉजी के नाम पर , बहुत से ग्राहक तो ये भी कहने लगे है इससे अच्छा तो रजिस्टर का जमाना था कम से कम काम तो नही रुकता था ।।
सरकारी बैंक ग्राहको का विस्वास खो रहे है एक तरफ नेटवर्क की समस्या दूसरी तरफ ग्राहको की अपर्याप्त संख्या जिनको संभालने के लिए बड़ी से बड़ी शाखा में मात्र 2 से 3 स्टाफ है , आखिर कैसे 2 से 3 स्टाफ सैकड़ो ग्राहको को संतुष्ट कर सकते है ।।
यह एक सोची समझी रणनीति के तहत सरकारी बैंकों को कमजोर किया जा रहा, और PCA लागू न होने के बावजूद भी नये स्टाफ की भर्ती नहीं की जा रही, एक स्टाफ से 4-5 लोगों का काम कराया जा रहा, बैंकर्स का सामाजिक और पारिवारिक जीवन स्वाहा हो रहा है।
बैंकों के अंदर बैंकर तले जा रहे बाहर बेरोजगार पकौड़ा तल रहे, मेरा देश सच में बदल रहा है ।
बिना पर्याप्त स्टाफ के सरकारी बैंक्स शाखाओं में बढ़ते ग्राहकों को पर्याप्त और बेहतर सेवाएं देने में असमर्थ है,नतीजा सेवा की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ रही, तथा मानव गलती और फ़्रॉड की गुंजाईश भी काफी बढ़ रही, ऊपर से बेकार के काम, जरूरत से ज़्यादा औपचारिकताएं, रिपोर्टिंग, compliance जैसे अनुत्पादक काम बढ़ा दिए गए है ब्रांचो पर |
पहले जहाँ एक बैंक अकाउंट खोलना 5 मिनट का काम था वही अब एक अकाउंट को खोलने में 2 घंटे भी कम पड़ते हैँ। मतलब जहां पर ज़्यादा सतर्कता और कड़े नियम क़ानून होने चाहिए वहा हमेशा ढिलाई #CorporateNPALoanScams और सारे सख्त नियम क़ानून, सारी जटिल औपचारिकताये बैंक शाखाओं के लिए बन रहे, ताकि ग्राहक सेवा की कमर टूट जाए। फिर अंत में सरकारी बैंकों को नाकारा, बेकार, अनुत्पादक बताकर निजी हाथों में कौड़ियों के भाव बेच दिया जाए #PrivatizationOfPSBsonCard
ये कैसा राष्ट्रवाद है? जो सिर्फ चंद कॉर्पोरेट घरानो की फ़िक्र करता हैँ? ये राष्ट्रवाद नहीं, पूंजीवाद है, परिवारवाद है। सरकारी बैंकों पर कुठाराघात है, सदैव दूध देने वाली गायों पर लात है।
निजीकरण इस देश की समस्याओं का समाधान नहीं है, जरुरत है सरकारी बैंकों को और ज्यादा मजबूत सक्षम बनाने की, नयी भर्तियां करके और विलफुल डिफॉलटेर्स पर कड़ी कार्यवाही करके, उनकी सम्पत्तिया जब्त करके न की देश की गरीब जनता पर निजीकरण थोप के ।।