जब महात्मा गांधी जी का अहिंसात्मक आन्दोलन देशवाशियों की आत्मा को झकझोरने में सफल नहीं हो पा रहा था, जब शक्तिशाली अंग्रेज़ों के राय बहादुर राय साहब जैसे खिताबधारी चमचे अहंकार और मदान्ध होकर गांधी जी का उपहास उड़ा रहे थे-तब मोर्चे से अगुआई करते हुए नौजवान भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने असेंबली में बम फोड़कर बहरे अंग्रेज़ों तक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आवाज पहुंचा दी थी और फिर हंसते हँसते फांसी के फंदे पर झूल कर देशवासियों की आत्मा को झकझोर दिया था. यह वह ऐतिहासिक घटना साबित हुई जिसने महात्मा गांधी जी की अहिंसातात्मक क्रांति को संजीवनी देकर इतना सशक्त बना दिया की अंग्रेज़ों को घुटने टेकने पड़े.
आज बैंक कर्मी भी गुलाम सदृश जीवन जी रहे हैं-देर रात तक काम करना, अवकास के दिन भी काम लिया जाना उनकी नियति बन गई है - जो लोग शुद्ध मन से ईमानदारी से भरा संघर्ष कर रहे हैं-whatsapp के आधिकारिक प्रयोग को स्वीकारने वाले “राय बहादुर" और "राय साहब" अहंकार और दम्भ में मदांध होकर उनका उपहास उड़ा रहे हैं. उन्हें युवा बैंक कर्मियों की रगों में प्रवाहित होने वाला भगत सिंह सरीखा उबलने वाला खून नज़र नहीं आ रहा, ग़ुलामी को अपनी नियत मान बैठे सेवा निवृत्त के करीब पहुँचे बैंक कर्मियों की आत्मा सोयी पड़ी है. इस सोयी आत्मा को जगाने के लिए जिनके खून में उबाल है और जिनमें अपने मान, सम्मान और स्वाभिमान को वापिस पाने की ललक है-उन्हीं के आंदोलन का नाम है वी बैंकर्स !
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कब तलक डरते रहोगे ? घुट घुट कर यूं मरते रहोगे?
सो रहे हो जाग जाओ, हम जगाने आ गए
आइना इस दौर का तुमको दिखाने आ गए.