केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के बराबर बैंक कर्मियों वेतन, पेंसन, कार्यदिवस व अन्य सुविधाओं दिए जाने की माँग को राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण को न्याय निर्णय हेतु सौंपने अथवा बैंक कर्मियों के लिए अलग से वेतन आयोग गठित करने से सम्बंधित याचिका की आज पुनः उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई - 06 अक्टूबर को दिए गए निर्देश के सम्बंध में केंद्र सरकार के वक़ील ने भारत सरकार के श्रम मंत्रालय से प्राप्त पत्र को प्रस्तुत करते हुए कोर्ट को सूचित किया कि वी बैंकर्स के औद्योगिक विवाद पर मध्यस्थता की कार्यवाही अभी भी मुख्य श्रमायुक्त (केन्द्रीय) के समक्ष लम्बित है और दोनों पक्षों की सहमति से संयुक्त वार्ता की तिथि निर्धारित की जाएगी जैसा कि भारतीय बैंक संघ (आईबीए) ने सूचित किया है कि द्विपक्षीय वार्ता के ज़रिए समाधान के प्रयास किए जा रहे हैं । इस पर माननीय न्यायाधीश महोदय ने कुपित होते हुए सवाल किया कि जब उपमुख्य श्रमायुक्त द्वारा 11 जून को सरकार को मध्यस्थता कार्यवाही की विफलता की रिपोर्ट सरकार को प्रेषित की जा चुकी है फिर इन परिस्थितियों में भला औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 12(5) के प्रावधानों के अन्तर्गत कार्यवाही करने की जगह फिर से वार्ता करने का भला क्या तुक है ? सरकार के वक़ील इस प्रश्न का सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सके । इसके बाद माननीय न्यायाधीश महोदय ने निर्देश जारी किए कि अगली तिथि पर भारत सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता कोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर स्थिति को स्पष्ट करें -नई याचिका के रूप में अगली सुनवाई की तिथि 22 अक्टूबर निर्धारित की गई है ।
बैंक कर्मियों को उपभोग की वस्तु मानते हुए सामूहिक सौदागिरी के सिद्धान्त के अंतर्गत भुगतान क्षमता के आधार पर ख़रीद फरोक्त करते हुए उनके अधिकारों की बोली लगा कर प्रतिशत वेतन वृद्धि और पेंसन निर्धारण की मौजूदा व्यवस्था के ख़िलाफ़ वी बैंकर्स का आंदोलन अब सफलता से एक क़दम दूर है - यदि कोर्ट वी बैंकर्स की माँगों को राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण को न्याय निर्णय हेतु सौंपने अथवा बैंक कर्मियों के लिए अलग से वेतन आयोग गठित करने के लिए निर्देश जारी कर देता है तब बैंक कर्मियों के अधिकारों का सौदा करने वाली अपमानजनक व्यवस्था का अंत हो जाएगा और जिस आधार पर सरकार ने बैंक के कनिष्ठ अधिकारी जेएमजीएस-1 को केंद्रीय सरकार के क्लास वन अधिकारी और बैंक क्लर्क और अधीनस्थ सँवर्ग को केंद्र सरकार के ग्रेड सी कर्मचारी के बराबर माना है उसी आधार पर उनकी स्थिति के अनुकूल वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण तरीक़े से आवश्यकताओं का मूल्याँकन करते हुए वेतन पेंसन का निर्धारण करना पड़ेगा ।
वी बैंकर्स ने अपनी याचिका में कहा है कि बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट के प्रावधानों के प्रतिकूल एक असंवैधानिक संस्था भारतीय बैंक संघ (आईबीए) नियोक्ता बैंकों का प्रतिनिधित्व कर रही है जो डंके के चोट पर कहती है कि न तो उसके ख़िलाफ़ कोई याचिका लगाई जा सकती है और न ही वह सूचना के अधिकार के अंतर्गत आती है । औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 36 के प्रावधानों के अनुसार आईबीए नियोक्ता बैंकों का प्रतिनिधित्व करने की योग्यता नहीं रखती । इसलिए वी बैंकर्स चाहता है कि एक ग़ैर क़ानूनी संस्था की जगह केंद्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण या वेतन आयोग जैसी विधिमान्य संस्था बैंक कर्मियों के वेतन पेंसन व अन्य सेवा शर्तों का निर्धारण करें ।
वी बैंकर्स ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त आँकड़े प्रस्तुत करते हुए कोर्ट को बताया है कि नियोक्ता बैंकों ने लगभग 15% वेतन वृद्धि का प्रावधान पहले से किया हुआ है और वी बैंकर्स के औद्योगिक विवाद के तुरंत बाद पिछले साल एक माह के वेतन के बराबर राशि का भुगतान तदर्थ तौर पर कर चुकी है इसलिए 22 जुलाई को UFBU और आईबीए के बीच बनी सहमति के आधार पर बैंक कर्मियों को 15% वेतन वृद्धि का भुगतान अस्थाई तौर पर अन्तरिम राहत के रूप में प्रति माह देते रहने के साथ साथ वेतन और पेंसन का निर्धारण केंद्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण को सौंपे जाने का आदेश न्याय हित में जारी किया जाए ।
वी बैंकर्स तो अपने कर्तव्यों का पालन पूरी ईमानदारी के साथ कर रहा है और उसके द्वारा किए गए प्रयास इसकी बानगी हैं -अब बैंक कर्मियों को तय करना है कि वे उनके अधिकारों की बोली लगाने वाले 10-12 लोगों के गिरोह जिसे यूएफ़बीयू के नाम से जाना जाता है के ख़िलाफ़ तुरन्त विद्रोह कर उनसे नाता तोड़ उन्हें बता दें कि उनके द्वारा जो निर्णय लिए जा रहे हैं बैंक कर्मी उनका समर्थन नहीं करते - यह वक़्त सेवारत और सेवा निवृत्त दोनों ही कर्मचारियों के सबसे ज़्यादा अहम है - उन्हें विकल्प चुनना है ।