ऐसा लगता है कि बैंक कर्मियों के हितैषी होने का ढोंग करते हुए उन्हें मौत के मुँह में धकेला जा रहा है, 50% स्टाफ और टीकाकरण के निर्देश कागज़ी दिखावा और ढोंग ही साबित हुए हैं क्योंकि इनका अनुपालन ही ठीक से नहीं हो पा रहा है। अब प्रधानमंत्री जी द्वारा किसान निधि की आठवीं किस्त जारी की गई है, आज बैंकों में भीड़ है - सोशल डिस्टेंसिङ्ग को लागू करवाने के लिए बैंकों के पास कोई साधन नहीं हैं और बैंक कर्मी संक्रमित हो जाने के खतरों के बीच काम करने को मजबूर हैं।
अनेकानेक शाखाओं में स्टाफ की संख्या इतनी कम है कि 50% वाला फॉर्मूला लागू कर पाना इतना अव्यवहारिक है कि इसे लागू करना सम्भव ही नहीं है। यह बात वह भी जानते हैं जिनके दिमाग का यह 50% वाला फितूर है। अरे क्या ग्राहक संख्या को नियंत्रित कर 50% किया जा सकता है? अब किसान निधि हो, पेंसन का भुगतान हो, बैंक खुली है तो इनसे सम्बंधित ग्राहक आयेंगे ही। न गार्ड न पर्याप्त मात्रा में चपरासी फिर भला सोशल डिसटेंसिग कैसे लागू करवाई जा सकती है? होना तो यह चाहिए था कि बैंक पूरी स्टाफ स्ट्रेंथ के साथ वैकल्पिक दिवस पर खोले जाएं और इन वैकल्पिक दिवसों का चयन इस तरह हो कि जहाँ एक से अधिक शाखाएँ हैं वहाँ बैंक सातों दिन काम करे लेकिन हर शाखा एक दिन के अंतराल पर ही खुले।
यही बात टीकाकरण पर लागू है, बैंक केंद्रीय सरकार के नियंत्रण में काम करती हैं, इसलिए बैंक कर्मियों का प्राथमिकता के आधार पर टीकाकरण का उत्तरदायित्व केन्द्र सरकार का है। बैंकों पर नियंत्रण रखने वाले वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा प्रभाग ने बैंक कर्मियों के टीकाकरण के बारे में राज्य सरकारों को पत्र लिख अपने उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। अगर सरकार की नियत साफ है तो नियोक्ता बैंकों को कर्मचारियों की संख्या के आधार पर टीका उपलब्ध करवाये और नियोक्ता बैंकों को ही उत्तरदायित्व दिया जाए कि वे अपनी बैंक के कर्मचारियों का पहले टीकाकरण करें और तभी काम लें।
बैंक कर्मी अव्यवस्था और कोरोना संबंधी रोक थाम के उपायों के शाखा स्तर पर लागू न हो पाने की वजह से निरंतर बड़ी संख्या में संक्रमित हो रहे हैं, हम अपने अनगिनत साथियों को खो चुके हैं और यह सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है- सरकार को चाहिए कि बैंक कर्मियों और बैंक के ग्राहकों के हित में ढोंग और दिखावे की जगह अमल में लाये जा सकने वाले नियम बनाये और संक्रमण से सुरक्षा सुनिश्चित करे।