We Bankers के केस पर श्रम मंत्रालय भारत सरकार ने राष्ट्रीय औधोगिक न्यायाधिकरण (एन.आई. टी.) का गठन किया
वी बैंकर्स के द्वारा उच्च न्यायालय इलाहाबाद में अपने औधौगिक विवाद की वार्ता असफल हो जाने पर भारत सरकार के द्वारा उसके वेतन , पेंशन, कार्यदिवस आदि मांगों को राष्ट्रीय औधौगिक न्यायाधिकरण या एक अलग आयोग बना कर सौंपने के लिए रिट दायर की गई थी जिस पर माननीय उच्च न्यायालय में भारत सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता ने उपस्थित होकर बताया कि वी बैंकर्स के औधौगिक विवाद पर श्रम मंत्रालय भारत सरकार ने 3 नवंबर को आदेश पारित करके राष्ट्रीय औधोगिक न्यायाधिकरण का गठन कर के मामले को मुम्बई स्तिथ राष्ट्रीय औधोगिक न्यायाधिकण को सौप दिया है।
आपको बता दे कि श्रम संगठनों के औधौगिक विवाद श्रामायुक्त के द्वारा मध्यस्थता वार्ता कराये जाने पर भी दोनो पक्षो में सहमति न बनने पर मामले को श्रम मंत्रालय भेजा जाता है जहाँ मंत्रालय मामले को अगर रेफेर करने वाला मामला समझता है तो उसको उसी प्रदेश के औधौगिक न्यायाधिकरण (लेबर कोर्ट) में भेज कर सम्बन्धीत मुद्दे पर 90 दिन में अवार्ड पारित करने का आदेश देता है और उक्त अवार्ड भारत सरकार के गजट में प्रकाशित किया जाता है पर राष्ट्रीय न्यायाधिकरण का गठन एक संविधानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत किया जाता है और ये राष्ट्रीय औधौगिक न्यायाधिकरण विशेष मुद्दों के लिए ही गठित की जाती है।
बैंक कर्मचारियो के वेतन पेंशन में केंद्र व राज्य सरकार के कर्मचारियो में बहुत बड़ा अंतर है इसी कारण से बैंक कर्मचारियो के नए संगठन वी बैंकर्स ने केंद्र व राज्य सरकार के बराबर वेतन , पेंशन व कार्यदिवस की लड़ाई जारी कर रखी है जबकि बैंकिंग इंडस्ट्री में सन 1966 से द्विपक्षीय समझौते के अंतर्गत वेतन समझौता किया जा रहा है और इसी समझौते के पक्ष भारतीय बैंक संघ को वी बैंकर्स ने चुनौती दी थी और इसकी वैधानिकता पर सवाल उठाया था।
वी बैंकर्स के महामंत्री आशीष मिश्रा ने बताया कि केंद्रीय वेतन आयोग की लड़ाई उनका संगठन लड़ रहा है अभी इस राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के गठन के बाद आने वाले फैसले से बैंकिंग इंडस्ट्री में बहुत कुछ बदलेगा क्योकि आज की इंडस्ट्री में बैंकर्स की दशा बहुत खराब है, अधिकारियों के कार्य समय के घण्टे नही तय है और एक क्लर्क की तनख्वाह केंद्र व राज्य के चपरासी से भी कम है।